शुक्रवार, सितंबर 18, 2009

आपबीती - काश हम वी आई पी न होते तो आज मेरी माँ मेरे साथ होती

वी आई पी यह एक तमगा है जो शान की बात लगती है . जहाँ जाईये सबसे आगे क्योकि वी आई पी जो ठहरे . एक बार मुंबई से दिल्ली आते समय हवाई जहाज में इसलिए कम्फर्ट नहीं मिला  क्योकि उसमे जे क्लास नहीं था पुराना बोइंग था और उसमे जे क्लास नहीं थी . हवाई जहाज उड़ने में देर थी कई अभिनेता और बड़े आदमी लोंबी में टहल रहे थे और हम आराम से वी वी आई पी लाउंज में बैठे आराम कर रहे थे क्योकि हम आखिर वी आई पी थे उस समय .

दिल्ली में लुटियन के बंगलो में आराम से रहे हम . ए.सी . की कूलिंग कम लगती तो नया बदलवा देते थे आखिर सरकार के दामाद हुआ करते थे . जिस समय क्वालिटी आइस क्रीम की ब्रिक ५० रु की थी तब हमे मात्र १४ रु की मिलती थी . २.५० रु की थाली ,१० रु का बटर चिकन वाह वाह , क्या दिन थे भाई आखिर वी आई पी थे उस समय . जब लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर धक्के खाते थे तो हम स्टेट एंट्री से सीधे प्लेटफार्म नम्बर  १ तक अपनी गाड़ी से जाते थे .

उसी समय एक झटका लगा और हमें लगा काश हम वी आई पी ना होते . मेरी माँ को थायरोड था और गले में सूजन थी दिल्ली में मिलेट्री अस्पताल में इलाज़ चल रहा था पिता जी एक साथी जो बाद में मुख्मंत्री भी बने मेजर जनरल से रिटायर थे उनके सहायता से वहां इलाज़ चल रहा था . आप्रेस्शन की तारीख तय थी . तभी हमारे यहाँ हमारे यहाँ हमारे प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री आये और उन्होंने कहा की उनके लिए शर्म की बात है की उनकी भाभी का ओप्रेस्शन दिल्ली में हो . आपने साथ वह हमको लखनऊ ले गए और एस.जी .पी .जी.आई में इलाज़ शरू हुआ .

स्वास्थ्य मंत्री तीमारदार ,मुख्यमंत्री समय समय पर हाल चाल ले रहा हो तो कल्पना कर सकते है अस्पताल में क्या स्थति होगी . बड़े सा बड़ा डाक्टर वह काम कर रहे थे जो कम्पौवडर करते है . वही हुआ ओप्रेस्शन के समय अनेस्थिसिया के लिए हेड ऑफ डिपार्टमेंट आये जिन्होंने शायद २० साल से पढाने के आलावा कुछ नहीं किया था . ओप्रेस्शन से पहले ही मेरी माँ की मृत्यु हो गई . वह भी इसलिए हुआ क्योकि हम वी आई पी थे .

आज से ठीक १८ साल पहले आज ही के दिन (२० सितम्बर ) को अस्पताल में ढेरो वी आई पी मेरी माँ के पास खडे थे खाली हाथ . सैकडो लाल नीली बत्ती , सैकडो कमांडो हजारो तमाशबीन गवाह थे की वी आई पी के परिवार को भी मौत आसमयिक उठा ले जाती है और उस समय वी आई पी और लाचार में कोई अंतर नहीं होता .

काश उस समय हम वी आई पी नहीं होते तो वह ओपरेशन छोटा सा डाक्टर भी किसी साधारण से अस्पताल में सफलतापूर्वक कर देता . ख़ैर अब हम आम आदमी है क्योकि वी आई पी बन बहुत कुछ खोया जो हमें फिर कभी वापिस नहीं मिल पाया .

10 टिप्‍पणियां:

  1. "जहाँ जाईये सबसे आगे ........"
    अरे ये तो वी आई पी के लिए नहीं रूपा बनियान वालों के लिए है:)

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  2. आपकी सहजता हमेशा मुग्ध करती है। बहुत कुछ खोकर बहुत कुछ सीखना पड़ता है। आप ज़मीन से जुड़े रहे, इस वजह से क्योंकि जिनकी वजह से आप वीआईपी थे, वे भी ज़मीन से जुड़े थे। उनके संस्कारों की बदौलत ही आप आज के यथार्थ को खुलेपन से स्वीकारते हैं वर्ना क्या आप जैसी पृष्ठभूमिवाले लोगों की संतति को भ्रष्ट होते हम देख नहीं रहे हैं?

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  3. माताजी के बारे में जानकर बहुत दुःख हुआ. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे. ऐसा लगता हिया की आप डॉक्टर दिनेश जोहरी के स्वास्थ्य मंत्रित्व काल की बात कर रहे हैं.

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  4. आप की मां जी के बारे में जानकर बहुत दुःख हुआ. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे.लगता है आप मै अच्छॆ संस्कार है, आप क लेख पढ कर आप के बारे मन मै ओर भी इज्जत बढ गई.

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  5. जमीन से जुड़े रहने का सुख बहुत बड़ा होता है। सारे दुःख जमीन झेल लेती है।

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  6. जहां एक और दुःख की बात आपने बताई वही यह जानकार अच्चा लगा कि आप में आत्ममंथन की क्षमता है, जो बहुत ही अच्छी बात है नहीं तो आज के वी आई पी तो ऐसे समझते है कि खुदा के बाद बस वही है !

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  7. कभी कभी अपने आसपास बुने वातावरण को तोड़ फैंकने को मन जरूर करता है जी। यह तो आपका बड़प्पन है कि उसे सार्वजनिक अभिव्यक्ति देते हैं उसे।

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  8. सही लिखा है भाई आपने वीआईपीपने में खूब चकल्लस है बस आत्मीयता की ही कमी रहती है. बाद में बस काम वही आते हैं जो वीआइपी होने से पहले साथ थे.

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  9. दिनेश जी की बात सोलह आने सच है "जमीन से जुड़े रहने का सुख बहुत बड़ा होता है। सारे दुःख जमीन झेल लेती है।"

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  10. AAPKA DUKH MAIN SAMAJH SAKTA HUN .... PAR AAPNE SATY LIKH HAI KABHI KABHI VIP HONA DUKH BHI DE JAATA ......

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा