जुल्म की दास्ताने आपने पढ़ी होंगी . महसूस की होंगी लेकिन जुल्म की इन्ताह कैसी होती है उसकी एक बानगी ...
जमींदारो के जुल्मो को अगर लिखा जाए तो एक ब्लॉग बनाना होगा और रोज़ एक पोस्ट भी लिखी तो सालो तक लिखने पर भी जुल्मो की दास्ताँ खत्म न होगी . ऐसे कई जमींदारो से दुर्भाग्य से दूर की रिश्तेदारी भी रही है उनका जुल्म के किस्से सुने और और उनके जुल्मो की सजा उनेह झेलते हुए भी देखा है .
ऐसे ही एक जमींदार का जुल्म की दास्ताँ है यह . गाँव के तालाब में कुत्ता बैल पानी पिए या निकाले कोई प्रतिवंध नहीं था लेकिन अछूत अगर वह पानी पिने के लिए भर ले तो कयामत आ जाती थी . जानवरों से बदतर जिन्दगी बिताने के लिए ही पैदा होते थे वह बेचारे .
कभी किसी दयालु ने उनकी बस्ती में एक कुँआ बनबा दिया जिससे पानी तो साफ़ मिल ही जाए उनको . यह जमींदार को नागवार लगी . बेगार न करने पर उनके कुए पर आदमी का मैला डलवा दिया जिससे वह लोग पानी न पी सके . फरियाद कहीं नहीं क्योकि मुंसिफ ही जुल्मी था . मुलजिम था .
ऐसे कई जुल्म झेल कर वह बेचारे गरीब पैदा से मरने तक का सफर पूरा करते थे . उधर जमींदार सहाब अपनी अय्याशी से भरपूर जिन्दगी बिताने के बाद जब बुडापे में पहुंचे तो अर्ध विछिप्त हो गए थे क्योकि कहां जाता है स्वर्ग भी यहीं और नर्क भी यहीं . समय के साथ साथ हालात ऐसे हो गए कि जमींदार को आपने खाने में मैला दिखने लगा . और ऐसी दर्दनाक मौत हुई उनकी जिसके वह हक़दार थे इस कहते है ऊपर वाले का इन्साफ और सही है उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती
जैसे कर्म करेगा,वैसा ही फ़ल पायेगा इंसान्।
जवाब देंहटाएंजो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा !
जवाब देंहटाएंसहमत,, कर्म के अनुसार ही फल मिलेगा... हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंऊपर वाले का इन्साफ और सही है उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती .. सही कह रहे हैं आप !!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा आप ने, शत प्रतिशत आप से सहमत हुं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा जी!
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