शुक्रवार, मार्च 06, 2009

आईये प्रकृति के संग फागुन मनाये ।

फागुन का रंग अगर देखना है तो पत्थर के जंगलो से निकल कर प्रकृति की ओर चलेदेखे वहां किस तरह प्रकृति अपने आप श्रंगार कर रही है पेड़ पोधो का ,पुराने पत्ते पतझड़ मे गिर गए

नए नए हल्के हरे रंग की कपोले , इतना सुंदर द्रश्य नयनाभिराम ................ खेतो मे लहराते हरे गेहूं की वालिया हवा का झोका जब इनको को लहराता है तो अल्ल्हड़ बाला की मतवाली चाल याद जायेगी

पीली सरसों पक चुकी
प्रकृति की तुलिका जब अपने पूरे शबाब पर है तो फागुन को भी महसूस करेरास ,फागका माहोलआईये प्रकृति के संग फागुन मनाये

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया रचना
    होली पर्व की हार्दिक शुभकामना

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  2. दिल्ली से कई बार कासना होते हुए सिकंदराबाद जाता हूँ तब करीब 10 km खेतों के बीच से होकर गुजरना होता है हरे भरे खेतों से गुजरना वाकई ताजगी ला देता है | और कुछ समय के लिए दिल्ली के प्रदूषण से निजात भी मिल जाती है |

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  3. प्रकृति के रंग तो अनूठे होते ही हैं.........
    और जब इन के साथ होली के रंग भी मिल जाएँ तो मजा कुछ और ही होता है,
    आपको होली की बहुत बहुत सुभकामनाएँ

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  4. सही कहा-असल रंग वही है फागुन का.

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  5. कुछ भी लिख देना कविता तो नहीं , शब्द बंधन पाठक को बांधने में नाकाम रहा है । प्रयास जारी रखें । शुभ वर्तमान

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  6. बहुत सही कहा ... होली की शुभकामनाएं।

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  7. अरे बहुत ही सुंदर लिखा आप ने मै गांव मै ही रहता हुं, ओर यह सब नाजारे हमेशा देखता हुं, लेकिन अभी हमारे यहा करीब दो महीने बाद ऎसा नजारा दिखेगा.
    सुंदर लेख के लिये धन्यवाद

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  8. सच मे पलाश के लाल पेड़ों को देखते ही रहने की इच्छा होती है।

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  9. फ्लाश के रंग दिल मोहते हैं ..सही कहा आपने सुन्दर होली मुबारक

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  10. आपकी पोस्ट उकसा रही है कि इस शहर से बाहर निकलें और प्रकृति का अवलोकन करें।
    देखिये, क्या कर पाते हैं।

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  11. होली की बहोत मुबारकबाद ,आपने जिस तरह से लिखा है
    सच में दिल झुमने लगा ,एक वक्त के लिए तो
    खो ही गए थे
    बहोत खूब...ढेरो बधाई आपको...

    अर्श

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा