फागुन का रंग अगर देखना है तो पत्थर के जंगलो से निकल कर प्रकृति की ओर चले । देखे वहां किस तरह प्रकृति अपने आप श्रंगार कर रही है पेड़ पोधो का ,पुराने पत्ते पतझड़ मे गिर गए ।
नए नए हल्के हरे रंग की कपोले , इतना सुंदर द्रश्य नयनाभिराम ................ खेतो मे लहराते हरे गेहूं की वालिया हवा का झोका जब इनको को लहराता है तो अल्ल्हड़ बाला की मतवाली चाल याद आ जायेगी ।
पीली सरसों पक चुकी ।प्रकृति की तुलिका जब अपने पूरे शबाब पर है तो इस फागुन को भी महसूस करे । रास ,फागका माहोल । आईये प्रकृति के संग फागुन मनाये ।
बहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंहोली पर्व की हार्दिक शुभकामना
दिल्ली से कई बार कासना होते हुए सिकंदराबाद जाता हूँ तब करीब 10 km खेतों के बीच से होकर गुजरना होता है हरे भरे खेतों से गुजरना वाकई ताजगी ला देता है | और कुछ समय के लिए दिल्ली के प्रदूषण से निजात भी मिल जाती है |
जवाब देंहटाएंप्रकृति के रंग तो अनूठे होते ही हैं.........
जवाब देंहटाएंऔर जब इन के साथ होली के रंग भी मिल जाएँ तो मजा कुछ और ही होता है,
आपको होली की बहुत बहुत सुभकामनाएँ
सही कहा-असल रंग वही है फागुन का.
जवाब देंहटाएंकुछ भी लिख देना कविता तो नहीं , शब्द बंधन पाठक को बांधने में नाकाम रहा है । प्रयास जारी रखें । शुभ वर्तमान
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा ... होली की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअरे बहुत ही सुंदर लिखा आप ने मै गांव मै ही रहता हुं, ओर यह सब नाजारे हमेशा देखता हुं, लेकिन अभी हमारे यहा करीब दो महीने बाद ऎसा नजारा दिखेगा.
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख के लिये धन्यवाद
सच मे पलाश के लाल पेड़ों को देखते ही रहने की इच्छा होती है।
जवाब देंहटाएंफ्लाश के रंग दिल मोहते हैं ..सही कहा आपने सुन्दर होली मुबारक
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट उकसा रही है कि इस शहर से बाहर निकलें और प्रकृति का अवलोकन करें।
जवाब देंहटाएंदेखिये, क्या कर पाते हैं।
शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसही है..
जवाब देंहटाएंहोली की बहोत मुबारकबाद ,आपने जिस तरह से लिखा है
जवाब देंहटाएंसच में दिल झुमने लगा ,एक वक्त के लिए तो
खो ही गए थे
बहोत खूब...ढेरो बधाई आपको...
अर्श