लगभग एक साल हो गया पोस्ट लिखे हुए .सन 2010 की दिसंबर ३१ को आखिरी पोस्ट लिखी थी . इस बीच पोस्ट पढी बहुत और लिखी एक भी नही . साल के शुरुआती दिनों में कई ब्लोगरों से मिलने का योग बना लेकिन समय अभाव में मिलना ना हो पाया . हमारे यहाँ एक कहावत है खरदा चलता नही तो नही चलता लेकिन चलता है तो सब मेढ़े तोड़ देता है . खरदा मतलब गधा .
कुछ दिन पहले समय ही समय था और अब समय बहुत कम पड़ गया मेरे लिए . एक जनवरी को मेरे पास खुशदीप जी का फोन आया कि वह स्वर्ग की साल में आ रहे है और मो सम कौन वाले संजय जी से पता चला अनुराग जी स्मार्ट इन्डियन इंडिया में ही है और बरेली की ओर है . दोनों से मिलने की बात पक्की हो गई . लेकिन ........ खुशदीप जी बरेली में और हमें दिल्ली जाना पड़ गया . फोन पर ही मुलाक़ात हुई हाय हेलो करके हम दिल्ली चले गए . जान कर संतोष था अनुराग जी से मुलाक़ात हो ही जायेगी.
लेकिन समय अपनी चाल पर था हमें दिल्ली में एक दिन ज्यादा लग गया . जल्दी जल्दी में अनुराग जी से संपर्क किया तो पता चला वह एक दिन और बरेली में रहेंगे लेकिन मुझे उस दिन लखनऊ में रहना था . मिलने की उम्मीद धूमिल हो गई . मैं निराश अपने बदायूं स्थित प्रतिष्ठान में बैठा था . अचानक मैंने अनुराग जी को फोन किया तो पता चला वह बदायूं आ रहे है और अपने पुश्तैनी गाँव को देखने जा रहे है . रास्ते में मैं मौजूद था अब मुलाक़ात पक्की थी . थोड़ी देर में अनुराग जी वही पहुच गए मुझसे मिलने साथ में उनके पिता जी और भाई साहब भी थे . कुछ पलो की मुलाक़ात हुई समय कम था और उन्हें अपने गाँव भी जाना था . बदायूं में मेरी हालत चमगादड़ सी रहती है और मेरे मेहमान भी उलटे ही लटके रहे . मैं अनुराग जी और उनके पिता जी व भाई का सत्कार भी ठीक तरह से ना कर सका . मेरा दुर्भाग्य है . लेकिन वह लम्हे यादगार रहेंगे हमेशा .
चलिये कोई तो मिला, खुशदीप जी तो दिल्ली में मिलेंगे ही।
जवाब देंहटाएंअच्छा जी!
जवाब देंहटाएंफ़िर कभी रज्ज के मुलाकात हो जाएगी।
जवाब देंहटाएंबहुत खुशी हुई आपसे रूबरू मिलकर। बरेली के दो बाशिन्दे दिल्ली और पिट्सबर्ग से आकर बरेली में कोशिश करने पर भी न मिल पाये मगर बदायूँ में अनायास ही मिल गये - यह भी सन्योग ही है।
जवाब देंहटाएंप्रसन्नता की बात है कि आपका प्रतिष्ठान्न जिले में अपनी तरह का पहला है। शुभकामनायें!
हम तो मिल चुके हैं अनुराग जी और खुशदीप जी दोनों से ... मज़ा आ गया दोनों से मिल कर ..
जवाब देंहटाएंबदायूं में मेरी हालत चमगादड़ सी रहती है और मेरे मेहमान भी उलटे ही लटके रहे .
जवाब देंहटाएंक्या उपमा दी है आपने भी अपनी व्यथा को. वाह...
कुछ फोटो भी अपलोड करिये यदि ली हों तो..
जवाब देंहटाएंधीरू भाई,
जवाब देंहटाएंबरेली आकर भी आपसे न मिलने का अफ़सोस तो हुआ...लेकिन उससे कहीं ज़्यादा खुशी हुई आपके सामाजिक सरोकारों में अति व्यस्त हो जाने की...
अगर ये पता होता कि अनुराग भाई भी उसी दिन बरेली में थे तो उनसे ज़रूर मिलता...गुरुदेव समीर जी के बेटे के विवाहोत्सव में अनुराग भाई की स्मार्टनेस से रू-ब-रू हो चुका हूं...वाकई परदेस में रहते हुए भी भारतीयता उनमें कूट-कूट कर भरी है...
जय हिंद...
संयोग बड़ी चीज है। कई बार कोशिश करने पर भी मनोवांछित नतीजे नहीं मिलते।खुशदीप जी ने सही कहा कि सामाजिक सरोकारों की व्यस्तता इस मलाल को कुछ कम करती है।
जवाब देंहटाएंउल्टे लटकते हैं कभी हम भी आपके साथ:))