रविवार, जनवरी 16, 2011

दाता के सखी

अलाव के इर्दगिर्द बैठे हाथ  तापते लोगो की निगाहें आती जाती कारो को घूर रही थी शायद कोई दाता का सखी आज आये और कम्बल दे जाए . कम्बल से ठंड मिटाने का जुगाड़ तो हो ही जाएगा . खुसरपुसर हो ही रही थी तभी एक कार रुकी सेठ जी के ड्रायवर ने डिक्की से कम्बल निकाल कर उन तापने वालो को दिये और कार आगे निकल गई .

तापने वालो के हाथ उन कंबलो को टटोलने में लगे थे . एक ने कहा .... साले कम्बल बाट रहे है या चद्दर क्या कीमत होगी ६० रुपेय  क्या भला होगा एक पौआ  भी तो नही मिलेगा इसे बेच  कर . और ठण्ड में एक पौआ  से भी क्या होगा इससे अच्छा  तो कल वाला था कम से कम कम्बल तो ढंग का था पौआ  के साथ साथ अंडे  का भी जुगाड़ हो गया था . चलो दान की बछिया के क्या दांत  गिने इसी से काम चलाओ . फिर कोई दाता की सखी आयेगी हमें ठंड से बचाने . साले कम्बल दान कर रहे है अगर पौआ बाटे तो इनकी दो चार पुश्ते तक सबाब मिलेगा . 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सटीक विश्लेषण है ... आज कल यह काफी देखा जा रहा है !

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  2. पौआ बाटने से ठंड का अनुभव नहीं होगा।

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  3. पता नहीं कितने कंबल बांटने वाले इस पोस्ट को पढ़ेंगे :-(

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  4. सबकी मानसिकता
    अपनी-अपनी!

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  5. ओह, कम्बल और पव्वा की लड़ाई में तो कम्बल शायद ही जीते! :)

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  6. आप के कहने के अनुसार मैंने पहली पोस्ट लिखी है. कृपया देखिये..
    पौआ आधे का भी आधा है, लेकिन पूरा है...

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  7. पव्‍वे की लड़ाई में तो कोई नहीं जीत सकता। बेचारे कम्‍बल की क्‍या औकात है? जब एक पव्‍वे से वोट पड़ जाते हैं तो?

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  8. समाज का कड़ुवा सच ... वीभत्स चेहरा ...

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा