हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है यह एक मज़ाक से ज्यादा कुछ नही । हिन्दी को इस उपाधि से मुक्त करना हमारे लिए भी अच्छा है और हिन्दी के लिए भी । क्योकि हिन्दी के साथ इतना सौतेलापन बर्दाश्त नही होता । यह सब विचार इसलिए आए क्योकि भारत के सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दी में फैसले व कार्यवाही में असमर्थता जताई है । कहा गया हिन्दी में कार्य सम्भव नही ।
अगर बेचारी हिन्दी के साथ यह व्यवहार सुप्रीम कोर्ट का है तो किस मुहं से हिन्दी अपने को इस देश की राष्ट्र भाषा कहे । बेचारी और लाचार हिन्दी का हाल बिल्कुल ऐसा ही है जैसे शहंशाह ऐ आलम - दिल्ली से पालम ।
जो देश और देशवासी अपनी भाषा का सम्मान नही कर सकते उनका सम्मान कौन करेगा । आज फ्रांस ,जर्मनी ,रूस ,चीन ,जापान जैसे देश अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करते है । और विकसित है उन देशो को किसी दूसरी भाषा की बैसाखी की जरूरत नही पड़ती । लेकिन हम लोगो को अ आ इ ई से पहले ऐ ,बी ,सी ,डी सिखा दी जाती है बचपन में । और यह बात भर दी जाती है बिन अंग्रेज़ी सब सून ।
मैं भी अपवाद नही , समय के साथ चलने के चक्कर में मेरी बेटी भी एक कोंवेंट स्कूल में पढ़ रही है । क्योकि मैं इतना शक्तिशाली नही जो धारा के विपरीत बह सकू ।
अपनी हिन्दी को राष्ट्र भाषा न सही मातृ भाषा के रूप में तो सम्मान दे ही सकते है । और उसके सम्मान के लिए कुछ तो योगदान दे ही सकते है । वैसे कुछ समय बाद हिन्दी सिर्फ़ एक १०० नम्बर का एछिक विषय के आलावा कुछ नही रह जायेगी संस्कृत की तरह । हिन्दी की जगह लेने के लिए हिंगलिश तैयार है ।
सही है धीरु भाई..एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई जो हिन्दी बोलना ’low standard' मानती है..मातृ भाषा जैसी कोई बात समझ नहीं आती.. लेकिन अब फिर से फिजा बदल रही है.. शायद कुछ भला हो.. उम्मीद करते हैं...
जवाब देंहटाएंसाठ वर्ष बाद तो यह समझ ही आना चाहिए कि हिंदी राष्ट्र की भाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं। अब इस भुलावे[छलावे] से जितनी जल्दी मुक्ति मिले, उतना ही अच्छा होगा हमारी भावी पीढी़ के लिए।
जवाब देंहटाएंदेखिये .. धैर्य रखिये..
जवाब देंहटाएंयहाँ अमेरिका मैं स्पेनिश लगभग मान्य सी दूसरी भाषा है | यहाँ पे सारा काम अंग्रेजी मैं होता है, अब किसी दिन ऐसी नौबात आ जाये की सारा काम स्पेनिश मैं करने की बात चले तो जाहिर है की सभी लोग बोल पड़ेंगे की स्पेनिश मैं काम करना संभव नहीं है | जबकी स्पेनिश और अंग्रेजी की लिपि भी एक ही है | ऐसा इसलिए है की लोग अंग्रेजी मैं अभ्यस्त हो चुके है , दुसरे भाषा को प्रारंभ करने मैं कठिनाई होती है | अपने देश मैं हिंदी और अंग्रेजी की लिपि भी बिलकुल अलग है जिससे सुरु की परेशानी ज्यादा है | लेकिन इसका ये अर्थ कदापि नहीं लेना चाहिए की हिंदी मैं काम करना संभव ही नहीं है | आरम्भ मैं थोडी परेशानी होगी जो बाद मैं अपने आप ठीक हो जायेंगी |
जवाब देंहटाएंमैंने भी हिंदी पे थोडा लिखा है | आपके विचार आमंत्रित है : http://raksingh.blogspot.com
धीरज धरो मेरे मित्र...अच्छे परिणाम होगे धैर्य के.
जवाब देंहटाएंहिन्दी के महत्व को बढाने के लिए हमें अपनी कोशिश बढानी होगी !!
जवाब देंहटाएंभैया अपना काम करते रहिये जितना हो सके,
जवाब देंहटाएंजो हाथ में नहीं उसका टेंशन नहीं लेने का !
संविधान में एक छोटा-सा संशोधन हो जाए तो स्वत: हिन्दी को उसका हक मिल जाएगा। हमारे संविधान में राजभाषा यानी राजकाज की भाषा का प्रावधान किया गया है और हिन्दी को राजभाषा घोषित भी किया गया है। लेकिन साथ ही यह भी जोड़ दिया गया है कि व्यवहार में राजभाषा के रूप में पहले की तरह अंग्रेजी का इस्तेमाल होता रहेगा। बस इसी साजिश को सुधारने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंआप की बात से मैं 100 फ़ि सदी सहमत हूँ............ बहूत ही दुख की बात है यह और इसके लिए सिर्फ़ नेता लोगों को ही दोष दूँगा में.......... अगर कर्ण धार चाहें तो सब कुछ हो सकता है ...........
जवाब देंहटाएंहिन्दी अब हिंगलिश में बदलती जा रही है.
जवाब देंहटाएंअब प्रसन्न रहें - आप हिन्दी में लिख रहे हैं और हम टिपेर रहे हैं। इतना बहुत है।
जवाब देंहटाएंसमय बदलता है - बदलाव आते रहते हैं. संस्कृत छूटी, पाली प्राकृत और अपभ्रंश आयी भी और गम भी हो गयीं. हिन्दी-अंग्रेजी भी समय के साथ काल के गर्त में जा सकती हैं. इमोशनल नहीं होने का धीरू भाई!
जवाब देंहटाएं