आदित्य का बचपन अपना बचपन याद दिला देता है । जो याद है वह एक पिक्चर की तरह दिमाग में चलने लगता है जैसे कल की ही बात है । कितनी शैतानिया और उन पर पड़ी मार आज भी याद आती है । शैतानियों की श्रंखला अगर शुरू करू तो कई दिनों तक चलती रहे । ख़ैर एक पर से परदा उठाता हूँ ।
बचपन से अपना पढाई से रिश्ता कुछ अच्छा नही रहा . कामचलाऊ सम्बन्ध था आख़िर यही कहा गया चलो स्नातक तो हो जाओ । बचपन में शुरुआत के समय एक बंगाली महाशय घर पर पढाने के लिए आए । उनेह सभी अधिकार दिए गए मारो पीटो कुछ भी करो इसे पढाओ ।
मास्टर सहाब सभी अधिकार का प्रयोग कठोरता से करने लगे बात बात पर पिटाई । कष्ट होने लगा मुझे दिमाग में कुछ विचार चलने लगे कैसे पीछा छुटे । बहुत उपाय करे कोई काम नही आए । एक दिन एक उपाय सूझा और उस पर अमल कर ही दिया ।
शाम को मास्टर सहाब आए । वह घर पर ऊपर के कमरे में पढाते थे । किसी बहाने से मै नीचे आया और सब्जी काटने वाला चाकू लेकर जीने के नीचे छिप गया । तभी अचानक पापाजी कहीं से आ गए उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो । मैने कहा आज मास्टर सहाब नीचे उतरे तब चक्कू अंदर और दम बाहर होगा । उसके बाद तो झापड़ का एक लंबा दौर चला । मै रोते हुए पढने को चला गया बेचारे मास्टर सहाब ने पूछा बेटा क्या हुआ , मैने कहा आज बच गए आज चक्कू अंदर था और दम बाहर थी आपकी ।
इतना सुनते ही मास्टर सहाब तुंरत नीचे आए और मेरी माँ से बोले बहिन जी कल से मै नही ओऊंगा मेरे छोटे छोटे बच्चे है और मै परदेश मे हूँ ,मेरे घर पर तो खबर भी नही पहुचेगी । मेरी माँ ने समझाया बच्चा है उसे डाट दिया है अब ऐसा नही करेगा । मास्टर सहाब बोले आप लोग तो ठाकुर हो आपका लड़का तो कुछ भी कर सकता है । बेचारे मास्टर सहाब ऐसे गए आज तक नही लौटे ।
उसके बाद कई आए पढाया लेकिन मै मार पीट कर ही पढ़ पाया । कामचलाऊ तो पढ़ ही लिया बे काम नही बी काम तो कर ही लिया था रो धो कर
इसलिये कहते है "आदित्य रंजन - याद दिला देगा बचपन"
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा धीरु भाई आपके बचपन के किस्से जानकर..
वैसे काम बहुत खतनाक था.. बेचारे मास्साब..
जवाब देंहटाएंहूं हूं हूं हूं हमारा एक्पीरियंस भी कुछ ऐसा था। बस मार खाते खाते इतने पक्के हो गए कि मास्साब ने हमारा नाम ही भगत सिंह रख दिया।
जवाब देंहटाएंहम ने तो दिल भर के पिटाई करवाई है, एक से नही सभी से जिस के हाथ लगे जी भर के पीटा, मां बाप, मोसी के बडे लडको ने,मास्टरो ने, यानि सभी ने हमे मिल कर चमकाया ओर खुब चमकाया ओर हम तो भाई हमीं थे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा आप का बचपन बिलकुल अपने जेसा
धन्यवाद
अरे वाह...समृद्ध बचपन जिया है आपने...
जवाब देंहटाएंदिलचस्प प्रसंग। आनंदम्....
बहुत खूबसूरत प्रसंग बालपन का । पढ़ाई के लिये कुछ न कुछ तिया-पाँचा करता ही है हर बच्चा । आभार ।
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी बहुत मस्ती भरे होते है
जवाब देंहटाएंआप तो बड़े खतरनाक आदमी हो जी !
जवाब देंहटाएंहां सही बात है। बचपन तो शैतानियों का दूसरा नाम ही होता है। जीवन का उससे सुंदर कालखंड कोई नहीं।
जवाब देंहटाएंमार खाने मे अपना भी रिकार्ड बहुत बढिया रहा है।अच्छी याद दिलाई बचपन की।
जवाब देंहटाएंअच्छा kissa है Dhiru जी ............. sacmuch bachpan ऐसे ही anginat yaadon से bandha rahta है......... tabhi तो itnaa suhaana लगता है
जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग बालपन का मुझे तो टिपण्णी देने से ही दर लग रहा था मगर हिम्मत कर ही दी .
जवाब देंहटाएंअब वो चक्कू कहाँ हैं...फेंक दो डर लग रहा है आपसे...:))
जवाब देंहटाएंनीरज
@ नीरज जी , चक्कू की जगह अब रिवाल्वर और बन्दूक ने ले ली है .
जवाब देंहटाएंवाह,बच्चा-ठाकुर से मास्टर भी डरता है! :-)
जवाब देंहटाएंचक्कू - क्या धारदार पोस्ट लिखी है. अब वे मास्टर साहब कहां हैं?
जवाब देंहटाएंगजब भाई..हमहूं बचपन में लौट लिए..मास्साब बेचारे.. :)
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