सुख और शान्ति की कीमत पर समृद्धि खरीदने वाले कितने दुखी होते है अंदर से , यह अध्यन और शोध का विषय है । आधुनिकता और विलासता की अंधी दौड़ रिश्तो नातो की बलि चडा कर क्या हासिल कर रही है । संतुष्ट एक ऐसा शब्द है जो सिर्फ़ शब्द कोष में ही दिखाई पड़ता है ।
एक प्रश्न यह उठता है इसका जबाब अपेक्षित है कि
शान्ति की कीमत में समृद्धि क्या सही सौदा है ?
shanti ki kimat par sariddhi sahi soudha nahi hai |
जवाब देंहटाएंbina shanti samriddhi ka koi ochity nahi |
NAMASKAAR,
जवाब देंहटाएंBAHOT DIN BAAD AANA HUA HAI AAPKE GHAR ... MAGAR JO PAINI HAALAAKI CHHOTI SI HAI MAGAR BAHOT HI GAMBHIR VISHAY PE LIKHAA HAI AAPNE , SANTUSHTI... SACH ME YE SIRF SHABDKOSH ME HI DIKHTAA HAI...
BAHOT BAHOT BADHAAYEE AAPKO
ARSH
दुनिया बदल चुकी है. अब इस तरह की बात नहीं की जाती, प्रभु!!
जवाब देंहटाएंराम राम राम। अपन तो हनुमान भक्त हैं और अपन शांति से भी उतनी ही दूरी बनाये रखते हैं जितनी समृद्धि से।
जवाब देंहटाएंगोधन, गजधन, वाजिधन और रतनधन खानि।
जवाब देंहटाएंजब आवे संतोषधन, सब धन धूरि समान॥
सुख और शांति से जीवनयापन के मानवीय सरोकार वहीं हैं जहाँ हजारों वर्षों से थे। भौतिक उपादानों से दुनिया का बाहरी चेहरा ही बदलता है। भौतिक प्रगति के इस तथाकथित युग में समृद्ध लोगों के चेहरे भी कुछ कम उदास, हताश और निराश नहीं हैं।
गोधन, गजधन, वाजिधन और रतनधन खानि।
जवाब देंहटाएंजब आवे संतोषधन, सब धन धूरि समान॥
सुख और शांति से जीवनयापन के मानवीय सरोकार वहीं हैं जहाँ हजारों वर्षों से थे। भौतिक उपादानों से दुनिया का बाहरी चेहरा ही बदलता है। भौतिक प्रगति के इस तथाकथित युग में समृद्ध लोगों के चेहरे भी कुछ कम उदास, हताश और निराश नहीं हैं।
सच कहूं तो बिलकुल नहीं............... समृधि कुछ समय तक अच्छी लगती है अगर शान्ति साथ न हो.......... शान्ति अमूल्य है
जवाब देंहटाएंकहीं पर तृष्णा की सीमा तो बांधनी ही होती है। अन्धे की तरह समृद्धि को चेज नहीं किया जा सकता!
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