मंगलवार, मई 15, 2012

सांसद रेखा के बहाने

सांसद  रेखा के बहाने आज का पुराना सच्चा किस्सा याद आ गया . लोकतंत्र  भी कितना अजीब है हमारे यहाँ के सांसद इंदिरा  लहर में जीत कर दिल्ली गए . जब उनसे उनके क्षेत्र  में लोगो ने उनसे पूछा आपको संसद में सबसे अच्छा कब लगा .तो वह यादो में खो गए और साफ़ गोई से बोले .........एक दिन जब फिल्म गंगा जमुना आई थी तब हम उसका टिकिट लेते समय भीड़ में अपना कुर्ता तक नुचवा चुके थे क्योकि हमें वैजयन्ती माला को परदे पर देखना था . और अब वही  बैजयंती माला संसद में हमारे पास में बैठती है . इससे अच्छा क्या लगेगा हमें .

वही  संतोष आज मुझे तमाम सांसदों के चेहरे पर लगा जब रेखा शपथ ले रही थी . ना जाने कितने सांसद सलामे इश्क को याद कर रहे  होंगे .कितने सांसदों ने अपने उन दिनों में रेखा को सपने में जरूर महसूस किया होगा वही वजह थी मेज की थपथपाहट  ज्यादा जोर से थी . जय हो रेखा की .वह अपने अनुभवों को महसूस जरूर कराएंगी चाहे वह उत्सव का हो या टेल  ऑफ़ कामसूत्र का .........

शुक्रवार, अप्रैल 20, 2012

कैसी कही

उन्हें शिकवा है  हम उन्हें न समझ सके 
अगर यह हम कहते  तो बेहतर होता 
बहुत कुछ न कह  सके हम उनके लिए 
शायद कुछ कहते तो अच्छा होता

जो दिल में है कमबख्त वही दिखता है 
अच्छा होता हमारे चेहरे पर चेहरा होता 
हम भी उनमे शुमार हो जाते धीरू
जिन्हें शराफत का तमगा मिलता 





शुक्रवार, अप्रैल 13, 2012

निर्मल बाबा की ..................? कृपा

लगभग हर टी वी चैनल पर जब निर्मल बाबा की तीसरी आँख बतौर विज्ञापन दिखाई जाती रही और कमाई होती रही तब तक कोई आलोचना नहीं हुई .और जब लगा कि बिना विज्ञापन के बाबा की दुकान दौड़ रही है और कमाई खत्म होने को है तो बाल की खाल निकालनी शुरू हो गई है . 

आज बाबा निर्मल ही हर चैनल में मुफ्त में प्रचार पा रहे है . और इसी बहाने कई तर्क शास्त्री .धर्माचार्य आज रोज़गार पा रहे है . एक बकवास बहस चल रही है . निर्मल सिंह नरूला का दरबार चल ही रहा है . 

क्या निर्मल बाबा ही दोषी है ? क्या वह लोग दोषी नहीं जो आज तक निर्मल बाबा की कमाई का हिस्सा विज्ञापन के रूप में खा रहे थे .  स्टार ,जी ,आजतक ,a x n जैसे चैनल भी मलाई चाट रहे  थे तब नहीं सोच रहे थे वह किसको बढावा दे रहे है . 

खैर निर्मल बाबा की जगह कोई और बाबा आ जाएगा दुखी हिन्दुस्तानियों को दो पल की ख़ुशी देकर उन्हें लूटने के लिए . वैसे  में भी अगर इस धंधे में उतर जाऊ तो कोई आश्चर्य ना करे क्योकि २३० करोड़ रु . कमाना इस जन्म में तो फ्राड करके ही कमा सकता हूँ . तो शुरुआत अपने आप से बोलिए धीरू बाबा की .....................

मंगलवार, फ़रवरी 28, 2012

हिंदी ब्लागिग के नुक्सान के लिए क्या चिट्ठाजगत व् ब्लागवाणी दोषी है

लगभग दो महीने हो गए ब्लॉग को लिखे हुए . ऐसा पहली बार हुआ . कल बहुत सोचा की ऐसा क्यों हो रहा है . और तो और इण्डिया टुडे के इस अंक में हिंदी ब्लोगिग की दुर्दशा पर भी एक रिपोर्ट आई है . जितनी तेज़ी से हम लोग चले थे  उससे तेज़ी से हम लोग रुक गए .

हिंदी ब्लोगिग को नुक्सान  के लिए ट्विटर  और फेस बुक को काफी हद तक दोषी माना जा रहा  है लेकिन मै इस का कारण चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी जैसे  लोकप्रिय ब्लॉग प्रेरको का असमय गन्दी राजनीति के आगे हार मान लेना रहा . आज भी ब्लागवाणी को खोलकर देखता हूँ की सीता की दुविधा ख़त्म हुयी की नहीं हुई . यह सच है चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी गागर में सागर थे ब्लागों के लिए . कोई माने या न माने मेरे लिए तो थे ही . बहुत से और एग्रीगेटर आये लेकिन मै उनके साथ सहज नहीं हो पाया . काश ब्लागवाणी फिर से शुरू हो चाहे तो एक प्रतीकात्मक शुल्क के साथ ही .


मेरी वरिष्ट ब्लागरो से अपील है की एक माहौल बनाये फिर से जिससे हम स्वयम्भू लोग भी लिखना पढना चालू रखे . ............................................... आमीन 

गुरुवार, जनवरी 05, 2012

बिना शीर्षक

मेरी एक तमन्ना थी की भाजपा ख़त्म हो जाए लेकिन इस तरह यह तो कभी सोचा ना था . भाजपा का पतन तो उसी समय शुरू हो चुका था जब बंगारू लक्ष्मण को वोटो की खातिर अध्यक्ष बनाया गया उसके बाद राजनाथ सिंह ने ढेर किया और ताबूत में आंखिरी कील ठोकने के लिए गडकरी है ही . 

वर्तमान में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जो हो रहा है वह भाजपा के अंतिम संस्कार की तैयारी ही लगती है . सत्ता को पाने के लिए पहले से ही नाले में बदल गई यह गंगा<?> अब भी नाले और सीवर को आत्मसात कर रही है . धरातल विहीन नेता जो  भाजपा की ह्त्या करने में शामिल है आज भी बेशर्मी से बक बक कर रहे है . आज श्यामाप्रशाद मुखर्जी ,दीनदयाल उपाध्याय ,सुन्दर सिंह भंडारी ,कुशाभाऊ ठाकरे की आत्माए सिर्फ एक ही बात सोच  रही होगी की उन्होंने एसा क्या अनजान पाप किया जो उनकी मेहनत इस तरह बर्बाद हो गई . 

भाजपा की जहां जहां सरकारे रही है वह भ्रष्ट शासन  के नए नए रिकार्ड बना गई एक आध अपवाद हो सकता है . कलपना करते पर डर लगता है अगर कही यह ६० साल शासन कर लेते देश में तो भारत का नामोनिशान मिटा देते . 

यह लेख एक  दर्द है जो सही आकार नहीं ले पाया 

बुधवार, दिसंबर 21, 2011

टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव

लगभग एक महीने बाद फिर आपके पास आया हूँ . नई नौकरी (?) या कहे पहली नौकरी ने बहुत समय ले लिया है . हर महीने टारगेट को अचीव करने में बहुत वक्त ख़राब होता है . और यह उस समय और कष्टप्रद है जब महंगाई का शोर है और जोर भी .

एक टारगेट रूपी बम हम पर फेका जाता है की कम से कम इतनी कार बेचना है . और उस बम को हम छड़ी बना कर अपने सेल्स के बन्दों  पर चलाते है . ठिठुरती ठंड में जब मै अपनी आटो ऐ सी कार में २२-२३ डिग्री टेम्प्रेचर मेंटेन कर  चलता हूँ तो रास्ते में से ही अपनी सेल्स टीम की थाह लेता हूँ की कही वह घर में बैठे ठंड तो नहीं मना रहे है . वह बेचारे ठंड में अपनी बाइको से हमारे टारगेट को पूरा करने के लिए दौड़ते रहते है . यही नहीं कितनी भी मेहनत करे वह बेचारे शायद ही कभी हमारी तरफ से उन्हें शाबासी मिलती हो . हां उन्हें एक लालच दे दिया जाता इंसेंटिव का ............. और उनके टारगेट इतने कर दिए जाते है शायद ही वह उसे अचीव कर सके .

और कुछ कुछ यही सब हमारे साथ होता है कम्पनी की तरफ से .हमें भी शालीन तरीके से लताड़े सुननी पड़ती है .

 लेकिन सब करा जाता है सब सहा जाता है . आखिर क्यों न हो एक ऐसी दौड़ हम सब दौड़ रहे है जो शायद कभी ख़त्म हो . ठीक उसी तरह बचपन में एक कहानी पढी थी कि एक राज्य में राजा ने कुछ पैसो में ही उतनी जमीन देने की घोषणा की जितना आदमी दौड़ कर पूरे दिन में घूम ले . एक व्यक्ति आया और वह  सम्पति पाने के लिए दिन भर दौड़ा और शाम होने से पहले ही थक कर गिर गया और मर गया उसके हिस्से में सिर्फ दो गज ज़मीन ही आ पाई . शायद वही दौड़ हम सब लगा रहे है . पैदा हुए थे तो नंगे थे और मरेंगे तो तो दो गज का कफ़न होगा यह सब जानते हुए भी दौड़ रहे है सिर्फ याद है तो सिर्फ ...............टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव 

गुरुवार, नवंबर 24, 2011

हुआ वही जो होना था

आखिर पानी गड्डे मे ही गया .

 बहुत दिनो पहले एक चुटकला सुना था . एक कम्पनी के चेयर मैन ने एक मीटिग मे अपने इम्पलाईयो से कहा इसे कहते है लगन ....... यह लडका ६ महीने पहले हमारी कम्पनी मे एक ट्रेनी के तौर पर आया और अपनी मेहनत और लगन से आज वह डायरेक्टर बन गया ..................... आइये जैन्टल मैन कुछ कहिये . लडका आगे आया और कहा थैन्क य़ू अंकल

यही कुछ टाटा संस मे हुआ . दुनिया को दिखाने के लिये खोज कमेटी बनी और आखिर ढाक के तीन पात .मिस्त्री सही अगर टाटा नही . 

यही तो होता आया है योग्य सिर्फ़ अपने ही पाये जाते है . चाहे किसी भी क्षेत्र मे हो . बदनाम तो सिर्फ़ राजनीतिक ही है .