लगभग एक महीने बाद फिर आपके पास आया हूँ . नई नौकरी (?) या कहे पहली नौकरी ने बहुत समय ले लिया है . हर महीने टारगेट को अचीव करने में बहुत वक्त ख़राब होता है . और यह उस समय और कष्टप्रद है जब महंगाई का शोर है और जोर भी .
एक टारगेट रूपी बम हम पर फेका जाता है की कम से कम इतनी कार बेचना है . और उस बम को हम छड़ी बना कर अपने सेल्स के बन्दों पर चलाते है . ठिठुरती ठंड में जब मै अपनी आटो ऐ सी कार में २२-२३ डिग्री टेम्प्रेचर मेंटेन कर चलता हूँ तो रास्ते में से ही अपनी सेल्स टीम की थाह लेता हूँ की कही वह घर में बैठे ठंड तो नहीं मना रहे है . वह बेचारे ठंड में अपनी बाइको से हमारे टारगेट को पूरा करने के लिए दौड़ते रहते है . यही नहीं कितनी भी मेहनत करे वह बेचारे शायद ही कभी हमारी तरफ से उन्हें शाबासी मिलती हो . हां उन्हें एक लालच दे दिया जाता इंसेंटिव का ............. और उनके टारगेट इतने कर दिए जाते है शायद ही वह उसे अचीव कर सके .
और कुछ कुछ यही सब हमारे साथ होता है कम्पनी की तरफ से .हमें भी शालीन तरीके से लताड़े सुननी पड़ती है .
लेकिन सब करा जाता है सब सहा जाता है . आखिर क्यों न हो एक ऐसी दौड़ हम सब दौड़ रहे है जो शायद कभी ख़त्म हो . ठीक उसी तरह बचपन में एक कहानी पढी थी कि एक राज्य में राजा ने कुछ पैसो में ही उतनी जमीन देने की घोषणा की जितना आदमी दौड़ कर पूरे दिन में घूम ले . एक व्यक्ति आया और वह सम्पति पाने के लिए दिन भर दौड़ा और शाम होने से पहले ही थक कर गिर गया और मर गया उसके हिस्से में सिर्फ दो गज ज़मीन ही आ पाई . शायद वही दौड़ हम सब लगा रहे है . पैदा हुए थे तो नंगे थे और मरेंगे तो तो दो गज का कफ़न होगा यह सब जानते हुए भी दौड़ रहे है सिर्फ याद है तो सिर्फ ...............टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव
एक टारगेट रूपी बम हम पर फेका जाता है की कम से कम इतनी कार बेचना है . और उस बम को हम छड़ी बना कर अपने सेल्स के बन्दों पर चलाते है . ठिठुरती ठंड में जब मै अपनी आटो ऐ सी कार में २२-२३ डिग्री टेम्प्रेचर मेंटेन कर चलता हूँ तो रास्ते में से ही अपनी सेल्स टीम की थाह लेता हूँ की कही वह घर में बैठे ठंड तो नहीं मना रहे है . वह बेचारे ठंड में अपनी बाइको से हमारे टारगेट को पूरा करने के लिए दौड़ते रहते है . यही नहीं कितनी भी मेहनत करे वह बेचारे शायद ही कभी हमारी तरफ से उन्हें शाबासी मिलती हो . हां उन्हें एक लालच दे दिया जाता इंसेंटिव का ............. और उनके टारगेट इतने कर दिए जाते है शायद ही वह उसे अचीव कर सके .
और कुछ कुछ यही सब हमारे साथ होता है कम्पनी की तरफ से .हमें भी शालीन तरीके से लताड़े सुननी पड़ती है .
लेकिन सब करा जाता है सब सहा जाता है . आखिर क्यों न हो एक ऐसी दौड़ हम सब दौड़ रहे है जो शायद कभी ख़त्म हो . ठीक उसी तरह बचपन में एक कहानी पढी थी कि एक राज्य में राजा ने कुछ पैसो में ही उतनी जमीन देने की घोषणा की जितना आदमी दौड़ कर पूरे दिन में घूम ले . एक व्यक्ति आया और वह सम्पति पाने के लिए दिन भर दौड़ा और शाम होने से पहले ही थक कर गिर गया और मर गया उसके हिस्से में सिर्फ दो गज ज़मीन ही आ पाई . शायद वही दौड़ हम सब लगा रहे है . पैदा हुए थे तो नंगे थे और मरेंगे तो तो दो गज का कफ़न होगा यह सब जानते हुए भी दौड़ रहे है सिर्फ याद है तो सिर्फ ...............टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव
नौकरी है तो टारगेट है, टारगेट है तो अचीवमेंट है, अचीवमेंट है तो पेमेंट है .. यह तो होना ही था :)
जवाब देंहटाएंइस ईमानदार स्वीकारोक्ति के लिए मैं आपका आभारी हूँ. क्योंकि सत्य बोलना भी बड़ी हिम्मत का काम है.
जवाब देंहटाएंबाजार का दबाव, धन का प्रभाव, लगे रहा जाय..
जवाब देंहटाएंचंदर्मोलेश्वर जी कि बात से पूर्णतः सहमत हूँ। :-) समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंधीरू जी, मेरी टिप्पणी कहाँ गई.. बू हू हू...
जवाब देंहटाएं"The trouble with the rat race is that even if you win, you're still a rat"
जवाब देंहटाएंhttp://en.wikipedia.org/wiki/Rat_race
मेरा लिंक नहीं है भैया, कहीं मुझे टार्गेट बना लो:)
जीवन है तो संघर्ष भी है।
जवाब देंहटाएंइस दोड के अलावा जीवन में अब कुछ नहीं बचा ... ये तेज़ी ... भौतिक सुविधाएँ ... सभी दौड़ रहे हैं इनके लिए ..
जवाब देंहटाएंटार्गेट का तो ये हाल है कि - ये जिन्दगी एक मुसलसल सफर है, जो मंजिल पे पन्हुचे तो मंजिल बढ़ा दी!
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