आखिर पानी गड्डे मे ही गया .
बहुत दिनो पहले एक चुटकला सुना था . एक कम्पनी के चेयर मैन ने एक मीटिग मे अपने इम्पलाईयो से कहा इसे कहते है लगन ....... यह लडका ६ महीने पहले हमारी कम्पनी मे एक ट्रेनी के तौर पर आया और अपनी मेहनत और लगन से आज वह डायरेक्टर बन गया ..................... आइये जैन्टल मैन कुछ कहिये . लडका आगे आया और कहा थैन्क य़ू अंकल
यही कुछ टाटा संस मे हुआ . दुनिया को दिखाने के लिये खोज कमेटी बनी और आखिर ढाक के तीन पात .मिस्त्री सही अगर टाटा नही .
यही तो होता आया है योग्य सिर्फ़ अपने ही पाये जाते है . चाहे किसी भी क्षेत्र मे हो . बदनाम तो सिर्फ़ राजनीतिक ही है .
हर जगह यही होता है।
जवाब देंहटाएंअब वह भी क्या करता धीरू भाई, चार लाख करोड़ को संभालने की बात थी।
जवाब देंहटाएंSahi kaha ... Vo kahavathai Nara .... Andha baante revri mud mud apne de ...
जवाब देंहटाएंइस मामले में अपन किसी प्रतियोगिता में नहीं थे, इसलिये मिस्त्री हो या टाटा, कोई फ़र्क नईं पैंदा जी।
जवाब देंहटाएंउनकी चीज है, उन्हें फ़ैसला करने का हक है। राजनीतिज्ञों के साथ ऐसा नहीं हो सकता, वो देश को या राज्य को संभालने के जिम्मेदार हैं।
आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सूरा सो पहचानिए ... जो लड़े दीन के हित ... - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंचौकी अपनी, चौकीदार अपना!
जवाब देंहटाएंसत्य वचन ...
जवाब देंहटाएंआज तक पारसी परिवार का सदस्य ही टाटा कं. का मालिक बनता आया है भले ही वह टाटा परिवार का न हो। अब जब उन्हें कोई अपने समाज का व्यक्ति नहीं दिख रहा था तो वे अन्य की खॊज में लगे थे। लगता है कि मिस्त्री मज़दूर न होकर मिस्त्री ही रहेगा॥
जवाब देंहटाएंटाटा सन्स का नाम ही बताता है कि वही होना था।
जवाब देंहटाएंजब जब जो जो होना है - तब तब सो सो होता है |
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