स्वायत्तता सिर्फ कश्मीर को क्यों ? सब राज्यों को क्यों नहीं . कश्मीर से लेकर केरल तक ,गुजरात से बंगाल तक और पूर्वोत्तर के राज्यों को भी स्वायत्तता दे देनी चाहिए . अपने क़ानून बनाये यह राज्य . अपने हिसाब से चलाये मुख्यमंत्री अपने राज्य को गवर्नर बन कर . अपनी फौजे बनाए .और इंडिया के साथ रहे .
यह कायराना विचार कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मूंह से निकाले गए ब्यान से आया जिसमे कश्मीर की स्थिति को देखते हुए और स्वायत्तता देने की बात कही गयी है . लाखो करोड़ खर्च कर दिए इन कश्मीरियों { यहाँ पर कश्मीरियों से मतलब उनसे है जो आज कश्मीर में रह रहे है } पर फिर भी वह पाकिस्तान परस्त है . आतंक के हिमायती है और इन्डियन डोग गो बैक के नारे लगाते है . फिर भी हम सौ सौ जूते खा कर उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे है . हमारी कमजोर और नाकारा सरकारे हमें आज तक नीचा दिखाती आ रही है .
यदि सरदार पटेल ना होते तो शायद सौ दो सौ कश्मीर पूरे हिन्दुस्तान में पल रहे होते . कश्मीर पर उनकी नहीं मानी गई तो यह हाल हुआ . ५०० से ज्यादा छोटे बड़ी स्टेट मिला दी भारत में लेकिन कश्मीर गृह राज्य था हमारे पहले प्रधानमंत्री का और उनके चहेते शेख अब्दुल्ला को वहाँ की बागडोर देना ही गुनाह हो गया . अब्दुला ने ही कश्मीर मिलिशिया नाम से एक सेना का भी गठन किया था . जो बाद में बड़ी मुश्किल से जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री बनी .
जब कश्मीर की बात होती है तो सिर्फ कश्मीर का ध्यान रखा जाता है जम्मू या लदाख का नहीं . कभी वहां के लोगो से पूछे किस दोयम दर्जे में रह रहे है वह . खैर उनकी यह नियति हमारी यह सरकार की वजह से ही है . अगर इस कमजोर सरकार पर अंकुश नहीं लगाया तो यू एस आई और उसके बाद अपनी ढफली अपना अपना राग .
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर चिंतन करे की कितने साल और तक यह स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा . मुझे तो नहीं लगता यह दिवस अक्षुण रह पायेगा .
बढ़िया सुझाव लगा जी, बल्कि हम तो कहेंगे U.M.I.(UNITED MOHALLAS OF INDIA) करवा दो, हमारा मोहल्ला भी स्वायत्त करवा दो, बाई डॉग मज़ा आ जायेगा।
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों आपसे सहमत ना होते हुए भी यह कह रहा हूँ कि आपसे सहमत हूँ ! आपसे सहमत हूँ इस बात पर कि आज जो हाल है वह इतिहास में की गयी भयंकर भूलो का नतीजा है ........आपसे सहमत हूँ कि आज की सरकार कमज़ोर है पर आपसे सहमत नहीं हूँ इस बात पर कि अपना स्वतंत्रता दिवस अक्षुण रह पायेगा! इतनी कुर्बानियों से मिली हुयी आज़ादी इतनी आसानी से जाने नहीं दी जाएगी !
जवाब देंहटाएंआपके अंतस्थल का दर्द दिखाई देता है हर पंक्तियों में. लेकिन शिवम भाई की बात भी सही है. आप जैसे लोग भी ऐसा सोचेंगे तो परिवर्तन कैसे होगा!!
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिए शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर-स्वागत है....
आतंक वाद कब तक झेलेगें हम
इसे इतिहास की भूल कहें या हमारा कायरपन कि देश के गद्दारों के सामने हाथ जोड़े खडॆ हैं॥
जवाब देंहटाएंहालत चिन्तनीय है।
जवाब देंहटाएंआप से सहमत है.
जवाब देंहटाएंsateek kaha...sadhuwad....
जवाब देंहटाएंअगर ऐसे ही देश के जयचंद सत्ता में रहेंगे तो ज़्यादा देर नही लगेगी टूटने में देश को .....
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