कश्मीर से कन्याकुमारी ,गुजरात से बंगाल तक और पूर्वोतर भारत तक किसम किसम का आतंक धीरे धीरे अपने पंजे कस रहा है . कश्मीर में लश्कर जैसे संगठन खुल कर और पंजाब में खालिस्तान समर्थक छुप कर और भारत के बाकी हिस्सों में माओवादी ,नक्सल वादी जैसी ताकते ताकतवर होती जा रही है . और हम IPL,सानिया की शादी और तमाम बातो में अपने दिमागी घोड़े दौड़ा रहे है . स्थिति बिलकुल उस मुहाने पर है कि रोम जल रहा था और नीरो बासुरी बजा रहा था .
हम खुश है कारो की रिकार्ड तोड़ विक्री देख कर हम खुश है दौड़ती हुई मेट्रो देखकर ,हम खुश है उची उची बिल्डिंगे देखकर .हमें चिंता है कामनवेल्थ गेम शुरू होने तक स्टेडियम तैयार हो जायेंगे कि नहीं .हमें चिंता है ब्याज की दरे ऊपर नीचे होने की ,हमें चिंता है गर्मियों में एयर कंडीशन चालने के लिए बिज़ली भरपूर मिलेगी या नहीं .हमें चिंता है बाघों की
लेकिन हम बेखबर है उस आग से जो चिंगारी के रूप में सुलग रही है . वह है गरीबी ,बेकारी ,भुखमरी . सिर्फ ३० % की चमक दमक ७०% के अंधेरो को काफी दिन तक ढक नहीं पायेगी . आज किसान बेचारा किसान अपनी फसल को लागत के हिसाब से बेच नहीं सकता उसका मूल्य सरकार तय कर रही है . औने पौने दामो में विचोलियो के हाथ अपनी मेहनत को लुटता देख किस्सान गरीब उस ओर कदम उठा रहा है जिसे आज नक्सल वाद और माओ वाद का नाम दिया जा रहा है . मुझे पूरा यकीन है जो आज नक्सलवादी और माओवादी कहलाये जा रहे है वह भी नहीं जानते माओ कौन है नक्सलवाद क्या है .उन्हें समझाया जा रहा है इस रास्ते पर चल कर तुम्हे अपनी मेहनत का वाजिब हक मिलेगा . सम्मान मिलेगा ताकत मिलेगी . और वह बेचारा गरीब दिशाहीन उस राह पर चलने के लिए मजबूर हो रहा है .
इधर हम रास रंग में उस तपिश को महसूस नहीं कर रहे है . क्योकि हमारी सोच परिवार के आगे जाती ही नहीं मैं सुखी मेरा परिवार सुखी तक ही हमारी उड़ान है . दूर की ओर देखना चाहिए जो उड़ता हुआ धुँआ दिख रहा है वह संकेत दे रहा है दावानल का . समय है अभी भी कुछ हो सकता है . अगर अभी भी नहीं चेते तो सदिया लग जायेगी आग बुझाने में .
धीरे-२ पूरा देश गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है नेताओं और अफसरों द्वारा...
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर विषय और सही आलेख।
जवाब देंहटाएंहां लगता है हम एक बड़े क्राइसिस की तरफ जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप कि अगर अभी भी नहीं चेते तो सदिया लग जायेगी आग बुझाने में .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा है आपने। लेकिन एक बात और भी है, हम लोगों को परिपक्व होना होगा। किसान को अपनी फ़सल का उचित मूल्य चाहिये जोकि उसका हक भी है, उपभोक्ता को सामान सस्ता चाहिये, सरकार सब्सिडी बंद करना चाहती है। आप भी हिसाब लगाकर देखिये कि सभी कैसे संतुष्ट हो सकते हैं। प्राथमिकता तय करनी चाहिये, और सिर्फ़ सही जरूरतमंदों को सुविधा मिलनी चाहिये - फ़िर चाहे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य हो, आरक्षण हो, सब्सिडी हो या कुछ और। लेकिन यह भी तय है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते यह लगभग असंभव ही है।
जवाब देंहटाएंबहरहाल आपकी चिंता जायज है।
सच कहा है आपने .. सच का आईना दिखाया है ... साधुवाद है आपको इतना सच इतनी बेबाकी से लिखने के लिए ... अगर आज नही जागे तो इन सबका मूल्य पूरी पीडी को चुकाना पड़ेगा ....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही स्थिति बयॉं की है आपने-
जवाब देंहटाएंरोम जल रहा था और नीरो बासुरी बजा रहा था .
अब संस्कृति की आड़ में मुख्य मुद्दों से मुँह चुरानेवालों को पहचानना होगा।
भाई, न जाने कब उठेंगे नींद से.
जवाब देंहटाएं[नया कलेवर बहुत जाँच रहा है - मगर यह फोटो बरेली की तो नहीं लगती.]