यह कमबख्त बारिस कब रुकेगी हमारे जमाने में तो सात साथ दिन पानी बरसता था तब भी इतनी परलय नहीं आती थी अब ना जाने ईस्वर ने किन्हें चारज दे दिया जो दो घड़ी की बारिस मे पूरे चौमासे का पानी उड़ेल देता है ।इतना कहकर बुढी जमुना ने अपने मरद की ओर देखा जो उस समय सीली दियासलाई से बुझी बीडी जलाने की जुगत में था । हाँ हाँ तू कह तो ठीक कह रही है असली कलजुग है अब तो परलय आने ही वाली है ,यह कह गंगादीन फिर से माचिस को रगड़ने लगा ।
कुछ चालीस पचास साल हो गए थे दोनों को व्याहे औलाद कोई हुई नहीं । बेगार कर कर सारी जिन्दगी काट डाली। नए लौंडे तो अब झूठी पत्तल नहीं उठाते गाँव में गंगादीन ही आखिरी मुग़ल था इस काम के लिए । और जमुना अब भी दो चार घरो में बासन कर अपना और गंगादीन का गुजारा कर लेती थी
परधान जी ने सफ़ेद रासन कारड बनवा दिया जो कोटेदार की करपा से महीने दो महीने मे सरकार की और से बटने वाले रासन से खर्चा चल जाता था ।
यह चौमासे शायद उनके लिए आख़िरी होने वाले थे ........... शेष आगे
शनिवार, जून 29, 2013
एक कहानी ..... . भाग 1
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पानी, सूखा,
जवाब देंहटाएंमन है रूखा,
दिन का दिन भर,
तम भय बीता।
आगे की कहानी का इंतजार है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया कहानी आगे की कड़ी की प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंओह, कुछ लोगों के लिए कलयुग शायद सारे जीवन पर ग्रहण लगाए रहा है।
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