शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

आज जनेश्वर जी के साथ समाजवाद भी दम तोड़ गया

                                                               
साम्यवाद और समाजवाद के आख़िरी मुग़ल एक सप्ताह के अंदर इस दुनिया को छोड़ कर चले गए  . पहले ज्योति बाबू अब जनेश्वर मिश्र . इन दोनों विचारधाराओ को एक धक्का लगा है इन दोनों के ना रहने से .

जनेश्वर जी तो प्रखर समाजवाद के आखिरी द्रष्टा थे . आज जनेश्वर जी के साथ समाजवाद भी दम तोड़ गया . अब समाजवाद के नाम पर सिर्फ समाजवाद शब्द का प्रयोग रह गया समाजवादी पार्टी में , आज के समय लोहिया जी के सिद्धांत के अकेले ध्वजवाहक छोटे लोहिया के नाम से लोकप्रिय जनेश्वर मिश्र राजनीति में आप्रसंगिक हो गए से लगते थे . समाजवादी पार्टी ने उनका प्रयोग किया यहाँ तक के खाटी समाजवादी मिश्र जी को जीवन के अंतिम सालो में ब्राह्मण नेता के रूप में पेश किया और विधानसभा चुनाव से पहले उनका जन्मदिन इसी प्रयोजन से प्रेरित था .

कितने सहज शब्दों में अपनी बात रखकर मन को मुग्ध करने वाले छोटे लोहिया हमेशा देसी लहजे में ही सबसे मिलते रहे . और जीवन को बिना ताम झाम के सादगी के साथ बिता गए . अगर अमर सिंह जैसे लोग उनका कहना कि समाजवादी बनो मुलायमवादी नहीं मान लेते तो इतनी कष्टप्रद स्थिति नहीं झेलते जो आज झेल रहे है .

साम्यवाद ,समाजवाद ,राष्ट्रवाद जैसे विचारधाराये पूंजीवाद ,जातिवाद ,परिवार वाद के आगे हार रही है . और इन विचारधाराओ के वाहक एक एक करके ख़त्म हो रहे है जो देश के लिए घातक साबित हो सकता है . देश की नैय्या के लिए यह आवश्यक है कि राजनेतिक विचारधाराए  .

स्व.जनेश्वर मिश्र जी को हार्दिक श्रधांजली .ईश्वर उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे
ॐ शांति शांति शांति

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. धीरू सिंह जी, विचारधारा अप्रासंगिक होने पर ही दम तोड़ती हैं। किसी व्यक्ति के या नेता के देहावसान से नहीं। वर्ना जिस दिन मार्क्स का देहावसान हुआ उसी दिन म्रार्क्सवाद का अंत हो जाना चाहिए था। हम केवल भावुकता में जरूर कह देते हैं कि उन के साथ ही विच्रारधारा समाप्त हो गई। दुनिया में पूंजीवाद सामंतवाद को खत्म करते हुए आगे बढ़ा था। यही नहीं इतिहास में तलाशेंगे तो वे अवसर भी मिल जाएंगे जब पूंजीवाद को सामंतवाद से मुहँ की खानी पड़ी होगी। समाजवाद या साम्यवाद तो नई चीज हैं। पूंजीवाद के आगे की व्यवस्थाएँ हैं। सोवियत संघ उस का पहला प्रयोग था लेकिन वह भी पौन शताब्दी चल गया। एक प्रयोग के असफल होने से यह नहीं कहा जा सकता कि कोशिश बेकार चली गई। कोशिशें अब भी जारी हैं। जैसे सामंतवाद का अंत हुआ है वैसे ही पूंजीवाद का अंत भी होगा। भारत में तो लोग मानते हैं कि जो पैदा हुआ है वह मरेगा। तो पूंजीवाद भी अनंत नहीं है।
    जनेश्वर जी मिश्र को आत्मिक श्रद्धांजली।

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  2. काहे के वाद. श्रीमान जी सब लोग अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं अपवादों को छोड़कर. मार्क्स और समाजवाद के अगुवा नामी पूंजीपतिओं से भी अधिक संपन्न हो चुके हैं. भारत में तो लगभग सभी अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं अपवादों को छोड़कर.

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  3. स्व.जनेश्वर मिश्र जी को हार्दिक श्रधांजली

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  4. स्व.जनेश्वर मिश्र जी को श्रृद्धांजलि!!

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  5. स्व.जनेश्वर मिश्र जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!
    समाजवाद और साम्यवाद ने तो उसी दिन दम तोड़ दिया था जब उसके नाम पर सत्ता हड़पने वालों ने सर्वहारा की अस्मिता को हड़पना शुरू कर दिया था. साम्यवादियों को खुद साहस करके यह सोचना पडेगा कि बन्दूक के दवाब में थोपा गया साम्यवाद हर जगह असफल क्यों हुआ है?

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  6. जनेश्वर मिश्र जी को हार्दिक श्रधांजली .....

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  7. मिश्र जी को श्रद्धांजली । द्विवेदी जी की बात काबिले गौर है ।

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