रविवार, नवंबर 30, 2008

ब्लोगरो से अपील-- अपनी कलम को हथियार बना, शब्दों में बारूद भरे

अपनी कलम को हथियार बना

शब्दों में बारूद भरे

सोया समाज राख समान

उसमे कुछ आग लगे

ज्योती को भड़का करा

क्रांति जवाला प्रजवलित करे

ब्लोगेर तुम समाज सुधारक

नहीं विदूषक निरे

समय आगया संघर्षो का

आओ तुम नेतृत्व करो

हास्य -परिहास श्रृंगार को कुछ दिन को विश्राम दो

लोकतेंत्र के तीनो स्तम्भ अपने आप ही हिल रहे

अनजाने भय के कारण

समाज भी है डरे हुऐ

सुबिधाओ की बहुतायत में

गुलामी की ओर बहे

रोकना होगा इस धारा को

डट के चट्टानों की तरह

शुक्रवार, नवंबर 28, 2008

लो जी एक एपीसोड खत्म हो रहा है आतंक शो का इस बादे के साथ फिर मिलेंगे इंतज़ार करे ।

लो जी एक एपीसोड खत्म हो रहा है आतंक शो का इस बादे के साथ फिर मिलेंगे इंतज़ार करे । और हम इंतजार करने के आलावा कर भी क्या सकते है । कब नया एपिसोड हो यह पता नहीं लेकिन यह धरावाहिक अभी खत्म होता नहीं दीखता । न जाने कितने नए एक्टर आकर अपनी प्रतिभा दिखायेंगे और लाइव शो कर के न जाने कितनी माँ की कोअख सूनी होंगी , कितने मांगे सूनी होंगी , कितने बच्चे अनाथ होंगे ।

और कितनी सरकारे बनेंगी , कितने वादे होंगे , कितनी कसमे खायी जाएँगी आतंक को खत्म करने को , लेकिन सनातन सत्य यह है की आतंक नामक लोकप्रिय धारावाहिक अभी तो चलेगा । और एक कड़वा सच --

रावन भी तभी मारा गया जब उसने सीता का हरण किया मतलब [ लिखने मे डर लग रहा है ] जब तक संघारक पर खुद नहीं बीतती तब तक लंका पर हमला नहीं होता ।

गुरुवार, नवंबर 27, 2008

अगर आतंक से निजात पानी है तो एक ही रास्ता है पाकिस्तान पर हमला

  • क्या अब भी कसर बाकी है ?
  • क्या यह हमला हमारे कान खोलने को काफी नही है ?
  • कितनी लाशे देखने के बाद हमारी नींद खुलेगी ?
  • क्या हमारा खून पानी हो गया है ?
  • क्या अब भी आतंक की विवेचना करनी पड़ेगी ?
  • क्या पाकिस्तान की साजिश को साबित करना वोट बैंक पर भारी पड़ता है ?

अगर आतंक से निजात पानी है तो एक ही रास्ता है पाकिस्तान पर हमला

बुधवार, नवंबर 26, 2008

काफिर

खुदा के बजूद को जब पूछता हूँ मैं ,
लोग काफिर कह कयामत के इंतज़ार को कहते है ॥

शुक्रवार, नवंबर 21, 2008

बिना शीर्षक ..क्या करे शीर्षक लिख कर

कुलबुलाहट सी होती है मन छठपटाता रहता है की कुछ लिखो , विषय मन मे आते है कुछ चर्चित कुछ विवादास्पद। फिर खुद ही डर लगने लगता है क्यों आग मे घी डालूं । लेकिन जो आग लगी है उसे देख कर चुप भी तो नहीं रहा जा सकता । आज के दौर में अपनी कमीज़ साफ कैसे दिखे उस के लिए दुसरे की कमीज़ को गन्दा कर दो का चलन बढ़ रहा है ।

स्वयम को महान साबित करने के लिए दुसरे को बदनाम कर दो । इसी परम्परा के ध्वज वाहक हो गए है नेता ,मिडिया ,यहाँ तक सरकार और पुलिस भी । दूसरो की भावनाओं का बलात्कार करना एक फेशन बन गया है। नोयडा का आरुशी काण्ड हो या प्रज्ञा का इतनी जल्दी अर्थ लगा लिय जाता है चाहे बाद मे उसका परिणाम कुछ निकले ।

आरुशी को रोज़ मारा गया बेचारी बच्ची का चरित्र हनन किया गया ,उसके माँ -बाप को ऐसा गम दिया जो आरुशी के कत्ल से भी ज्यादा गहरे साबित हुए । उस समय मिडिया की भाषा बदल गयी सब टी .आर .पी के चक्कर मे डॉ तलवार को इस अभद्र भाषा में पुकारते थे की जाहिल भी ऐसी भाषा का प्रयोग करने मे हिचकेगा ।

यही जाहिलता कर्नल पुरोहित ओर प्रज्ञा सिंह के साथ हो रही है । अभी यह लोग आरोपित है दोषी नहीं यदि इनका दोष सिद्ध हो जाए उस दिन बीच बाज़ार सूली पर टांग देना । लेकिन यदि निर्दोष साबित हुए तो इनका जो चरित्र हनन हम लोग आज कर रहे उसकी भरपाई केसे करेंगे ।

कर्नल पुरोहित को गाली देने के चक्कर मे हम सेना को गाली दे रहे है उस सेना को जो आजतक अपनी एक साफ़ ,निष्पक्ष छवि बना कर रखी हुई है ,यदि सेना का मनोबल ऐसे ही तोड़ते रहे ओर सेना ह्तौत्साहित हो गई तो उसका परिणाम क्या होगा । सोच कर डर लगा या नहीं

मंगलवार, नवंबर 18, 2008

हो सके तो याद कर लो आज रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिन है


रानी लक्ष्मीबाई --- बुंदेलों हर बोलो के मुहं हमने सुनी कहानी थी ,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ।
आज इसी वीरांगना का जन्म हुआ । जिसने अपनी हुंकार से अंग्रेजों को लोहे के चने चब्बा दिए । आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाली रानी लक्ष्मी बाई को शत शत नमन ।
आओ उन को भी याद कर लिया करे जिनके बलिदान से हम आज आजाद है ।
शहीद को भूल गए तो हम भी याद नही रखे जायेंगे ।

रविवार, नवंबर 16, 2008

थोड़ा सा गंभीर हो जाए. हम गृह युद्ध के मुहाने पर खडे है

एक ज्वालामुखी सुलग रहा है । धुआं भी उठ रहा है । हम उसे जानबूझ कर अनदेखा कर रहे है क्योकि उसके विनाशकारी परिणाम हमें डरा रहे है और वह ज्वालामुखी है गृह युद्ध ।

जो कार्य अंग्रेज न करा पाये वह काम राजनीति के रुधिर पिपासु अपनी कमियां छुपाने को अपने हिंदुस्तान को गृह युद्ध की ओर धकेल रहे है । इस समय नए नए विवाद प्रयोजित तरह से एक के बाद एक सामने आ रहे है और हम हिन्दुस्तानी रोज़ उनकी परिभाषाएं खोजने में लगे है । रस्सी को साँप और साँप को रस्सी बना कर पेश किया जा रहा है ।

आतंक को धर्म में बाट दिया । बम्ब भी हिंदू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई हो गया । आतंक और आतंकवादी को उनका धर्म देख कर उन कार्यवाही की जा रही है । जबकि आतंकवादियों को धर्म से कोई सरोकार नही होता । दुनिया का कोई भी धर्म शायद आतंक को मान्यता देता हो ।

जब हमारे यहाँ किसी भी अपराध और वह भी समाज के खिलाफ हुई अपराध की विवेचना धर्म को सामने रख कर होगी तभी समाज विरोधी तत्व भावनाए भड़काकर देश को गृह युद्ध की ओर धकेलेंगे । और हम नादाँ लोग जाने अनजाने उस युद्ध में शामिल हो जायेंगे । क्योंकि हम हमेशा से ही मोहरे बनते रहे सियासत के खिलाड़ियों के ,चाहे १९४७ हो १९७५ हो १९७७ हो १९८४ हो १९९१ हो या २००८

ज्वालामुखी धधक रहा है इसके फूटने से पहले इसका इलाज नही किया गया तो यह बर्वाद कर देगा । क्योंकि हम इस्रायल जैसे मानसिक सक्षम नही है पूरा विश्व चाहता है की हम बर्वाद हो जाए क्योंकि हम विश्व का नेत्रत्व करने की छमता रखते है ।

शनिवार, नवंबर 15, 2008

इंसानियत बीते ज़माने की बात हो जायेगी

इंसानियत बीते ज़माने की बात हो जायेगी
किस्से कहानियो व किताबो में रह जायेगी
इंसानों को खोजना पड़ा तो
वह अजायबघर की किसी अलमारी में पाया जायेगा

ईमान और खुद्दारी
का मतलब कोई न बता पायेगा
इनका जिक्र आया तो
गीता या कुरान में ही आएगा

एहतराम और इज्ज़त
के किस्से सुने जायेंगे
यह भी कुछ होता था
उसे बडी मुश्किल से मान पाएंगे

गुरुवार, नवंबर 13, 2008

भारत का पहला और आखिरी बम्ब धमाका मालेगावं में

भारत एक शांत देश है । यहाँ के नागरिक भोले है [समीर जी के सुसंस्कृत शब्दों के अनुसार ] यहाँ आज तक कोई हिंसा की घटना नही हुई । १९४७ से आजतक धमाके सिर्फ़ दिवाली के पटाखों के रूप में हुए । कश्मीर शांत ,असम शांत ,और तो और कोई नक्सली आतंक नही कोई समस्या नही अमन चैन से रहने वाले भोलो में से बहुसंख्यक जाति के एक सिरफिरी दुर्दांत आतंकवादी प्रज्ञा सिंह ने भारत में पहली बार एक बम्ब माले गावं में फुड़वा दिया । जिसमे पहली बार कुछ लोग शहीद हो गए ।

प्रज्ञा सिंह ने एक अछम्य अपराध किया देश की शान्ति भंग की उसका उसे ऐसा दंड मिलना चाहिए जिससे पूरी दुनिया में एक संदेश जाए कि भारत आतंक के खिलाफ कितना सजग है । और हम भोले लोग आतंक को कभी सहन नही करेंगे । हमारी सेना के कुछ शातिर लोगो ने बम्ब बनाने में सहायता कि उन पर भी कार्यवाही होगी और इस बात कि भी सज़ा मिलेगी बम्ब क्यो बनवाया हम तो बम्ब अपने दुश्मनों पर भी नही चलाते ।

हम शर्मिंदा है भारत के पहले और आखरी बम्ब धमाके के लिए ,सारी दुनिया के चतुर लोगो से छमा चाहते है हम प्रज्ञा सिंह जैसे विषधर को समाप्त करके ही दम लेंगे । जिससे हमारे अफजल जैसे भाई बदनाम न हो ।

बुधवार, नवंबर 12, 2008

गोरी तू मेला देखन नाय जइयो तोको नोच नोच खाय जाएँ

मैं तो मेला देखन जाउंगी मेरे पास पडोसी सब जाएँ
गोरी तू मेला देखन नाय जइयो तोको नोच नोच खाय जाएँ

यह लाइन एक लोकगीत की है जो मेले को जाने की जिद कर रही पत्नी को पति समझा रहा है । मेला एक ऐसा शब्द जो बचपन की यादे ताज़ा कर रहा होगा आपकी, और वह भी गंगा का मेला जो दिवाली के ठीक १५ दिन बाद पूर्णमासी को होता है ।

मेरा गावं श्री गंगा जी के तट पर है और पिछले १५० सालो से वहा कार्तिक मास में गंगा दशहरा के अवसर पर मेला लगता है । आज भी बैल गाड़ियों में सपरिवार आकर लोग तीन चार दिनों के लिए गंगा के किनारे एक रंग बिरंगा शहर बसाते है ,रेत पर तम्बूओ पर रहना ,वही पर खाना बनाना खाना ,गाना बजाना कीर्तन । सब ग्रामीण परिवेश एक नयनाभिराम द्रश्य जो दिल में बस जाता है ।

मेले में रोजमर्रा की घरेलू सामान ,बर्तन ,ढोलक ,चारपाई ,मिटटी के बर्तन ,खिलोने लोग खरीदते है और मनोरंजन के लिए नौटंकी ,झूले ,सर्कस ,खेल तमाशे और मेले में जलेबी न खायी तो कुछ भी नहीं किया ।

और हमारे मेले में सबसे बड़ा आकर्षण है पशु नखासा {बाज़ार } एक से एक नस्ल वाले घोडे ,बैल ,गाय ,भैस ,भैसे और तो और हाथी व ऊठ तक । पशुओं को सजाने के लिए सामान भी मेले में मिलते है ।

एक अद्भुत द्रश्य कभी मौका मिले तो जरूर देखे । गंगा के किनारे जन समुन्द्र और हां पति की बात भी सच हो सकती है । गोरी जइयो संभल के नाय तो तुझे लोग नोच नोच खाय जाय

शनिवार, नवंबर 08, 2008

ओबामा मेरा मामा क्योंकि जितने काले वह मेरे बाप के साले

ओबामा ओबामा ओबामा यह एक आदमी हिंदुस्तानिओं को इतना भा रहा है कि कोई उसे बिष्णु का अवतार न घोषित कर दे । अमरीका का राष्ट्रपति ओबामा हमारी आँखों का तारा हो गया और अभी तो २० जनबरी को शपथ होनी है । लेकिन हम भूल रहे है भेड़ियों के घर में भेड़ पैदा नहीं होती ।

हमारे पडोसी इसलिए बधाई स्वीकार कर रहे है कि उन्होंने ओबामा से अपनी नजदीकी रिश्तेदारी घोषित कर दी है ,वह ओबामा के भांजे बन गए है क्योंकि उनेह लगता है कि जितने काले वह मेरे बाप के साले ,

और तो और ओसामा भी ओबामा के बारे में सॉफ्ट कार्नर है क्योंकि वह भी उनेह अपना सा लगता है । ओबामा की यही शक्सियत तो उनेह यहं तक ले आई है । क्योंकि ओबामा को सब लोग अपना मान रहे है लेकिन कब तक ...................................

गुरुवार, नवंबर 06, 2008

शुक्र है ,मेरे हाथ में पिस्तौल थी .

जितेन्द्र भगत जी की पोस्ट "शुक्र है ,उनके हाथ में पिस्तौल नहीं थी "के बारे में पढ़ा बड़े शहरो के बिगडे नवाबजादे क्या नहीं कर गुजरते । ऊँची सिफारिश रखने वाले बेखोफ़ साड़ कहा किस्से टकरा जाए । किसे नुक्सान पहुचादे पता ही नहीं चलता । इससे मिलता जुलता एक हादसा मेरे भी साथ हुआ ।

मैं ग्रामीण प्रष्टभूमि का शहर में रहने वाला एक किसान हूँ । गाँव से शहर रोज़ आना जाना होता है रात बिरात में भी चलना होता है । अभी थोड़े दिन पहले फसल कट रही थी और किसान का वही एक आधार है आमदनी का ,इसलिए खेत पर देर हो गई रात में १० बजे करीब घर की और अपनी गाड़ी से चला ।

थोडी दूर पर ८ , १० लोग दिखाई दिए जो लूटने के मकसद से खडे थे । उन्होंने मुझे रोकने की कोशिश की और गाड़ी पर ईंट फेक कर मारी जिससे शीशा टूट गया ,शुक्र था मेरे पास अपनी पिस्तौल थी और रुकते ही मैंने फायर कर दिया । मेरे अचानक उग्र हमले से उन में भगदड़ मच गई ,और उनमे से एक लड़के को पकड़ लिया तब तक गाँव से और लोग भी आ गए । पकडे गए लड़के की पिटाई पूजा के बाद पोलिस में दे दिया वहां पता चला वह एक अच्छे घर का लड़का था और पढ़ रहा था ।

उसके भबिश्य को देखते हुए उसकी पहली गलती को माफ़ कर दिया । गलत संगत और मज़े के लिए लड़के ऐसे अँधेरे में प्रवेश कर जाते है वहां से निकलना मुश्किल हो जाता है । भगत जी बच गए की वहां पिस्तौल नहीं थी और मैं बच गया क्योंकि मेरे हाथ मैं पिस्तौल थी ।

मज़बूरी है अपने को बचाने के लिए हमें हथियार रखने पड़ते है । जंगल सा माहौल है सब तरफ जिन्दा रहने के लिए रोज़ कोशिश करनी पड़ती है । क्योकि मर भी तो नहीं सकते ऐसे ,पीछे रोने वालो का क्या होगा .

मंगलवार, नवंबर 04, 2008

इसे क्या कहेंगे -मौत या जिंदगी

मेरे बचपन का साथी ,मेरा दोस्त ,मेरा हमराज ,मेरा भाई क्या नहीं था वह मेरा । साथ साथ खेले साथ साथ पढ़े ,उम्र में कुछ ही तो बड़ा था मुझसे । एक साईकिल पर पूरा शहर घूमते थे ,हमारी दोस्ती मशहूर थी हमारी बिरादरी अलग होने के बाबजूद वह हमारे घर का एक सदस्य था ,मेरी बहिन का बड़ा भाई था ,उसके बच्चो का सगा बड़ा मामा ।

सब कुछ हसी ख़ुशी चल रहा था ,एक दिन वह थोडा बीमार पड़ा ,थोड़े दिन बाद पता चला की उसे मल्टीप्ल सिरोसिस है ऐसे बीमारी जिसका इलाज़ नहीं ,वह क्यों होती है पता नहीं । यानी मौत निश्चित । हल्के हल्के वह मौत की तरफ बड़ रहा था ।

जिंदादिली इतनी कि वह इसका मज़ा लेता था औए कहता था मैं तो साल भर के अंदर मर जाऊंगा लेकिन तुम लोग तो शायद आज ही मर जाओ । मैं मोटा हूँ इसलिए कहता था धीरू को तो कन्धा लगा नहीं पऊंगा इसलिए उस से ही कन्धा लगवाऊंगा । और वह दिन जो निश्चित था आया और उसे अपने साथ ले गया ,उस समय से उसकी याद मेरी दोस्त है । और एक बात उसका नाम था विश्वास

सोमवार, नवंबर 03, 2008

महिला आरक्षण के नाम पर महिलाओं के साथ धोखा ?

एक नई बहस पुराने विषय पर "महिला आरक्षण" ।

पिछले कई सालों से फुटबाल बना यह बिल नेताओं की ठोकरे खा-खा कर अपनी शक्ल भी खो बैठा है । उ।प्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने ताजे बयान में आरक्षण में आरक्षण का शिगूफा छोड़ कर बहस को तेज कर दिया । वैसे महिला आरक्षण में आरक्षण राजनाथ सिंह अपने मुख्यमंत्री काल में लागू कर चुके है ।


भाजपा ,कांग्रेस ,कम्युनिष्ट महिला आरक्षण की वकालत तो करते है लेकिन अमल से कोसो दूर है । अभी दिल्ली की विधान सभा प्रत्याशियों की सूची इनकी कलई खोलने के लिए काफी है । ३३% की तो दूर .३% भी तो नहीं दिए महिलाओं को टिकट । महिलाओं के हक की बड़ी -बड़ी बातें करने वाली नेत्रिया भी आरक्षण की जानबूझ कर चर्चा नहीं करती ।

दवी कुचली महिलाओं की आवाज़ सशक्त महिलाएं भी सुनती नहीं चाहे वह सोनिया गाँधी हो वृंदा करात हो ,सुषमा स्वराज हो या मायावती हो । तथाकथित महिला सशक्तिकरण का दंभ भरने वाली भी कान में ऊँगली डाल के बैठी रहती है ।

महिला आरक्षण पर आखरी बहस शुरू होनी चाहिए , आर या पार जो पार्टी इस आरक्षण का समर्थन करती है वह इन विधानसभा चुनाब में अपनी सूची में महिलाओं को स्थान दे , नहीं तो आधी आबादी से माफ़ी मांगे कि हम उनेह बेबकूफ बना रहे है ।